20 से 60 साल के 20 मरीजों पर हुए अध्ययन में सामने आए बेहतर परिणाम
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। दुर्घटना में घायल व्यक्ति के शरीर से अत्याधिक खून बह जाने, लगातार उल्टी-दस्त होने से मरीज हाइपोवॉलेमिक शॉक में चला जाता है। अब ऐसे हाइपोवॉलेमिक शॉक (एक तरह का आघात) की चपेट में आए मरीजों के लिए जल्द ही सेंथाक्विन सिट्रेट इंजेक्शन बाजार में उपलब्ध होने की उम्मीद है। क्योंकि, मेडिकल कॉलेज में ट्रायल के दौरान ये इंजेक्शन लगाने के बाद अन्य दवाओं, इंजेक्शन के मुकाबले मरीजों में 50 फीसदी तेज रिकवरी हुई है।
हाइपोवॉलेमिक शॉक एक आपात स्थिति है, इसमें बीमारियों, हादसे समेत कई कारणों से शरीर के अंगों को उचित मात्रा में ऑक्सीजन एवं रक्त नहीं पहुंच पाता है, जिससे वो काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे मरीज को जल्द ही राहत देना डॉक्टरों के लिए मुश्किल हो जाता है। दवाइयां इसमें अपना असर देर से दिखाती हैं, ऐसे में कई बार मरीजों की जान पर भी बन जाती है। इस बीमारी के इलाज में सेंथाक्विन सिट्रेट इंजेक्शन असरदार साबित हुआ है। इसका तीन चरणों में ट्रायल हो चुका है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु के अलावा झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की मंजूरी के बाद इसका चौथे चरण का ट्रायल मार्च 2023 से शुरू हुआ। मेडिकल कॉलेज में हाइपोवॉलेमिक शॉक में आए 20 से 60 साल के 20 मरीजों को ये इंजेक्शन लगाया जा चुका है।
ट्रायल के को-इंवेस्टिगेटर डॉ. जकी सिद्दीकी ने बताया कि हाइपोवॉलेमिक शॉक में गए मरीजों का ब्लड प्रेशर काफी कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में उन्हें ये इंजेक्शन नि:शुल्क लगाया गया तो 70 फीसदी मरीजों में अन्य दवाओं व इंजेक्शन की तुलना में 50 फीसदी तेजी से रिकवरी हुई। इनमें किसी मरीज का खून अधिक बह गया था, कोई शरीर में पानी की कमी होने से शिथिल हो गया था। किसी में ऑक्सीजन की कमी हो रही थी।
डॉक्टर अभी वैकल्पिक इंजेक्शन के रूप में कर रहे इसका उपयोग
बताया गया कि शुरुआती स्थिति में जिन 30 फीसदी मरीजों में तेजी से रिकवरी नहीं हुई, वो मधुमेह या संक्रमण की चपेट में थे। या फिर काफी देर से अस्पताल पहुंचे। जिस कारण उनके शरीर के हार्ट, किडनी, लिवर ने काम करना बंद कर दिया और उनका मल्टी ऑर्गन फेल्योर हो चुका था। विशेषज्ञों के मुताबिक अभी डॉक्टर वैकल्पिक इंजेक्शन के रूप में इसका उपयोग कर रहे हैं। चौथे चरण के ट्रायल में सफलता के बाद बड़े पैमाने पर इस इंजेक्शन उपयोग शुरू हो जाएगा।
हाइपोवॉलेमिक शॉक में जाने का कारण
– हादसे में घायल का ज्यादा खून बह जाना
– लगातार उल्टी-दस्त होना
– सर्जरी के दौरान ज्यादा रक्त निकल जाना
शॉक के लक्षण
– बेहोशी, नब्ज का असामान्य होना, शुगर कम होना, दिल की धड़कन अनियमित होना, चक्कर आना, छाती में दर्द, सांस फूलना, कोई एलर्जी होना, अधिक खून बह जाना, हार्ट फेलियर, शरीर में पानी या ऑक्सीजन की कमी आदि।