सिलक्यारा सुंरग में फंसे मजदूर बाहर निकले
– फोटो : amar ujala
विस्तार
उत्तराखंड के सिलक्यारा में सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 मजदूरों को बाहर लाने में बुंदेली चूहा सुरंग खोदाई पद्धति कारगर साबित हुई। झांसी के जांबाज रैट माइनर्स परसादी लाल, राकेश और भूपेंद्र राजपूत ने विरासत में मिली इस पद्धति (रैट माइनिंग) का ऐसा जौहर दिखाया कि 21 घंटे में हाथ से ही 15 मीटर तक सुरंग खोद डाली। जबकि सुरंग को खोदने में बड़ी-बड़ी मशीनें पूरी तरह फेल हो गईं।
अभियान के बाद अब बुंदेलखंड की चूहा सुरंग खोदाई पद्धति एक बार फिर चर्चा में है। बुंदेलखंड में सुरंग खोदाई की यह तकनीक डेढ़ हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है। झांसी और कालिंजर का किला इस बात का गवाह है कि यह तकनीक दुनिया को बुंदेलखंड से ही मिली है। इतिहासविद डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि 1500 साल से भी पहले से यहां के किलों में चूहा पद्धति से बनाई गईं सुरंग मौजूद हैं।
ऐसे रैट माइनर्स ने रेस्क्यू को दिया अंजाम
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के अभियान में अमेरिकी ऑगर मशीन भी सामने आई बाधाओं के सामने हांफ गई। ऐसे में रैट माइनर्स की टीम ने अपनी करामात दिखाई। अंततः ऑगर मशीन पर मानवीय पंजें भारी पड़े और इनके दम पर 17वें दिन ऑपरेशन सिलक्यारा परवान चढ़ा।
17 दिन तक बचाव अभियान में जुटी टीमें मजदूरों का जीवन बचाने के लिए सभी विकल्पों पर काम शुरू कर चुकी थी। बड़कोट की ओर से माइनर सुरंग खोदने, वर्टिकल ड्रिलिंग, मगर जहां ऑगर मशीन फंसी थी, वही विकल्प मजदूरों तक पहुंचने का सबसे करीबी जरिया था। इसीलिए सुरंग के भीतर लोहे के गर्डर से क्षतिग्रस्त हो गए ऑगर मशीन के पंजों को एक-एक करके बाहर निकाला गया।