झांसी। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों…ये पंक्तियां पृथ्वीपुर में रहने वाले युवा अनिल कुमार पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। असल में जन्म से दृष्टिबाधित अनिल ने हाल
ही में पहले प्रयास में नेट की परीक्षा पास की है। अनिल का कहना है कि उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। यही उनकी सफलता का मूल मंत्र है।
मऊरानीपुर के पृथ्वीपुर में रहने वाले किसान जमुना प्रसाद और रामवती का छोटा बेटा 24 वर्षीय अनिल कुमार जन्म से ही दृष्टिबाधित है। जैसे-जैसे अनिल बड़े होने लगे रिश्तेदार और पड़ोसियों ने कहा कि इसको हारमोनियम, तबला पकड़ा दो, जो देख नहीं सकते वो संगीत में अच्छे होते हैं। लेकिन, माता-पिता ने प्राथमिक विद्यालय पृथ्वीपुर में दाखिला करा दिया। अनिल बताते हैं कि स्कूल में पाठ को सुनकर याद करते थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 में मऊरानीपुर में दिव्यांगों के लिए तीन माह का कैंप लगाया गया था। इसमें उनको ब्रेल डॉट, ब्रेल पढ़ना आदि सिखाया गया, इसके अलावा रोजमर्रा का अपना काम खुद से करना भी बताया गया। वर्ष 2010 में एक वर्ष की अवधि के कैंप ने उनको काफी सक्षम बना दिया था, क्योंकि कैंप में उन्हें अपने जैसे ही बच्चे मिले थे। अनिल ने बताया कि इससे उनका आत्मविश्वास जागा कि और भी लोग हैं जो उनके जैसे हैं और जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अनिल ने बताया कि उनके शिक्षक आशीष तिवारी उनको अक्सर पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे, उनके माता-पिता को भी समझाकर स्कूल में दाखिला दिलवाया था।
साल 2011 में 8वीं की परीक्षा पास करने के बाद वर्ष 2014 में बांदा के राजकीय ब्लाइंड स्कूल में दाखिला लिया और 12वीं पास कर ली। उसके बाद लखनऊ के डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्विकास विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। अनिल बताते हैं, यहां आकर उन्हें कई किताबें पढ़ने का मौका मिला। सरकार की ओर से उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती है। परास्नातक के चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र हैं, हाल ही में उन्होंने यूजीसी नेट की परीक्षा पास कर ली है। पहले ही प्रयास में परीक्षा पास अनिल जेआरएफ और सहायक प्रोफेसर के लिए योग्य हो गए हैं।
समेकित शिक्षा जिला समन्वयक रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि अनिल समेकित शिक्षा के अंतर्गत परिषदीय स्कूल का छात्र रहा है, वो हमेशा कहता था कि उसे शिक्षक बनना है ताकि अपने जैसे अन्य बच्चों को शिक्षा में मदद कर सके।
– अकेले ही करते हैं भ्रमण
अनिल बताते हैं कि आज वे इतना सक्षम हो चुके हैं कि अकेले ही मुंबई से कोलकाता तक भ्रमण कर चुके हैं। इतना ही नहीं घर से कॉलेज तक वे अकेले ही जाते है।
– ऑडियो बुक से शिक्षा हुई आसान
– ऑडियो बुक आने के बाद ब्रेल की दुनिया से बाहर निकल आए हैं। ब्रेल की किताबों की जगह अब ऑडियोबुक से ही अपनी पढ़ाई करते हैं। इसके अलावा अन्य कई किताबें भी ऑडियोबुक की मदद से सुनते हैं।