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घनी आवादी से गुजरते ओवरलोड बड़े बड़े पत्थरों से भरे डम्पर, जिम्मेदार आंखे किये बंद….

झांसी की सड़कों पर मौत दौड़ रही है… और जिम्मेदार अफसर आंखें मूंदे बैठे हैं। कोतवाली मोठ इलाका हो या शाहजहांपुर की पहाड़ियाँ… डंपरों में ओवरलोड पत्थर भरकर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ना कोई जांच, ना रोक-टोक… सवाल उठता है — क्या सिस्टम को किसी बड़े हादसे का इंतजार है?

झांसी के मोठ कस्बे से हर रोज गुजरते हैं ये भारी-भरकम डंपर… इन डंपरों में भरे होते हैं ओवरलोड पत्थर — जिन्हें देखकर लगता है मानो सड़कें टूट जाएंगी, लेकिन जिम्मेदार विभाग… बिल्कुल बेखबर।

शाहजहांपुर थाना क्षेत्र की पहाड़ियों से होते हुए पत्थर लादकर ये डंपर निकलते हैं… न कोई सुरक्षा, न कोई नियम का पालन… हर रोज तीन थाना क्षेत्रों से गुजरते हैं ये जानलेवा वाहन। रास्ते में आते हैं आम लोगों के घर, राहगीर, स्कूली बच्चे… लेकिन किसी को चिंता नहीं।

25 से 30 किलोमीटर का ये खतरनाक सफर सिर्फ पत्थरों का नहीं, बल्कि आम जन की जान का भी इम्तिहान है। तेज रफ्तार, ओवरलोड डंपर… और सिस्टम की चुप्पी — क्या ये मिलीभगत नहीं?

सवाल सिर्फ इस बात का नहीं है कि ये डंपर बिना रोक-टोक कैसे चल रहे हैं… सवाल ये भी है कि इन रूट्स पर तो अधिकारियों के बंगले हैं, दफ्तर हैं — क्या उनकी आंखों में पट्टी बंधी है?

सूत्रों की मानें तो शाहजहांपुर की पहाड़ियों में अवैध ब्लास्टिंग से निकाले जा रहे पत्थरों को बड़े आराम से बसोबई के क्यूबिक स्टोन क्रेशर तक पहुंचाया जाता है… और रास्ते में होती है नियमों की हत्या।

खनिज विभाग से लेकर परिवहन विभाग तक… सब मौन हैं। पुलिस की मौजूदगी के बावजूद डंपर धड़ल्ले से निकलते हैं। तो क्या यह साजिशन चुप्पी है? या फिर डंपर माफिया का तगड़ा नेटवर्क?

मोठ कोतवाली से सामने से गुजरते हैं ये ओवरलोड वाहन। आवाजाही इतनी भारी कि धरती कांप जाए… लेकिन कानों तक पहुंचने वाली आवाज शायद जिम्मेदारों को नहीं सुनाई देती।

कभी भी पत्थर गिर सकते हैं, कभी भी कोई हादसा हो सकता है। अगर डंपर से गिरे पत्थरों की चपेट में कोई आया… तो जिम्मेदार कौन होगा?

यह सिस्टम की वो चुप्पी है, जो तब तक टूटती नहीं जब तक खून से सड़के लाल ना हो जाए। झांसी प्रशासन को अब जागना होगा… क्योंकि मौत अब सड़कों पर चल रही है — खुलेआम, बेलगाम।

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