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खप्टिहा कलां। श्रेष्ठ शिष्य ही गुरु की आज्ञा का पालन कर सकता है। गुरु भी उसी शिष्य से अपेक्षा करते हैं, जो उन्हें योग्य लगते हैं। यह संदेश आचार्य विमलांशु महाराज ने पुराण कथा में कही।

कस्बे के मां पाथादाई मंदिर के दिव्य दरबार में 18 दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा में अयोध्या से पधारे कथा व्यास आचार्य विमलांशु महाराज ने गुरु और शिष्य की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम में उज्जैन पढ़ने के लिए गए। वहां 64 दिनों में ही 64 विद्या सीख लीं। गुरु बाबा से गुरुदक्षिणा के लिए निवेदन किया।

कहा पूज्य गुरुदेव दक्षिणा में आपको क्या समर्पित करना है। संदीपनी गुरु ने अपनी पत्नी से परामर्श कर अपने पुत्र जो प्रभास क्षेत्र के सागर में डूब गया था, उसे लाने की इच्छा व्यक्त की। शिष्यों के प्रभाव को वह जान चुके थे कि यह साक्षात परमात्मा हैं, कृष्ण बलराम प्रभास क्षेत्र में जाकर के समुद्र से गुरुपुत्र लाने के लिए निर्देश दिया।

समुद्र ने कहा कि मैंने गुरु पुत्र को नहीं डुबाया है, यहां एक शंखासुर नाम का दैत्य रहता है। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने शंखासुर का वध कर उसके मस्तक से दिव्य शंख निकाल लिया। यमराज से गुरु पुत्र लाकर के गुरुजी को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने शिष्यों को आशीर्वाद दिया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने कान्हा के जयकारे लगाए और प्रसाद ग्रहण किया।



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